कहो कैसे हो मेरे लाल
(अग्र लिखित पंक्तियों को उन बच्चो को ध्यान में रखकर लिखा गया है जिन्होंने किसी भी तरह के अराजक दंगे या फसाद में अपने माता पिता को खोया।मासूम बच्चो की व्यथा को बयां करने की छोटी सी कोशिश)
ज़िंदगी की धूप छांव,ये कोरे कागज की नाव
ये बिन कपड़ों के तन,ये विचलित सा मन
आंखों में कई सवाल,कोई तो पूछे हाल
कहो कैसे हो मेरे लाल?
क्या कुसूर हमारा है,ये बचपन की ही तो धारा है
करके दंगे और फसाद,तुमने जो हाथ पसारा है
नहीं चाहिए ये खैरात,लूट के हमारा मातपिता का प्यार
अब पूछते हो...कहो कैसे हो मेरे लाल?
भर के द्वेष और घृणा,जब गले काट रहे थे
अपनी लालच के खातिर जब सबको बांट रहे रहे थे
कहां गई थी मानवता और कहां गया था प्यार?
अब ना पूछो तुम ढोंगियों,के कैसे हो मेरे लाल?
एक दिन टूटेगा आडंबर,और सत्य के ढोल बाजेंगे
मुकुट सजेगा सच्चाई के माथे,और झूठ थर थर कापेंगे
कोरे कागज़ पर कलम लिखेगी सच्चाई,इतिहास करेगा वार,
फिर पूछेगी पीढ़ी तुमसे कि कहो कैसे हो मेरे लाल?
पूछेगी पीढ़ी तुमसे फिर कैसे हो मेरे लाल!
रौशन💐
Swati chourasia
24-Sep-2021 07:05 PM
Very beautiful 👌
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Kaveri Lily
23-Sep-2021 10:53 PM
बहुत सटीक रचना
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Raushan
23-Sep-2021 10:54 PM
Bahut bahut शुक्रिया dear kaveri mam
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
23-Sep-2021 10:48 PM
Wah bahut sundar rachna
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Raushan
23-Sep-2021 10:53 PM
Thank u so much Sir
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